संतो की नगरी में संतो का आगमन
थांदला गौरव दिगंबर जैन मुनि पुण्यसागरजी सहित 19 पीछी का 19 वर्षो के बाद 6 को होगा मंगल प्रवेश
थांदला। वात्सल्य मूर्ति दिगम्बर मुनि पूज्य श्री 108 पुण्यसागरजी महाराज का सशिष्य थांदला में 6 मई को मंगल प्रवेश हो रहा है। इस शुभ घड़ी का इंतज़ार 19 वर्षों से थांदला दिगम्बर जैन समाज ही नही अपितु हर हिन्दू समाज कर रहा था जब थांदला की मिट्टी में पले बड़े संत देश और दुनिया को आध्यात्म की शिक्षा देकर नगर को गौरवांवित कर रहे हो। मुनिश्री के नगर आगमन को लेकर दिगम्बर समाज ने उनका मंगल प्रवेश करवाने व नगर जनों को उनकी दिव्य वाणी का लाभ मिल सके इसके लिए व्यापक तैयारियां की है। पूरा नगर मुनिश्री के आगमन पर शुभ संदेशों के फ्लैक्स से पटा पड़ा है हर गली मोहल्लों में मुनिश्री व उनके दो भाई मुनि थांदला के ही उग्र तपस्वी महोत्सव सागरजी व उपहारसागरजी भी नगर में पधार रहे है। यह पहला अवसर है जब मुनिश्री के साथ उदित सागरजी, मुदित सागरजी, उत्सव सागरजी व क्षुलक पुर्ण सागरजी आदि कुल 7 संत व सौरभमति माताजी, प्रमोदमति माताजी, हर्षितमति माताजी, पर्वमति माताजी, उत्साहमति माताजी, निर्णयमति माताजी, निश्चयमति माताजी, नियममति माताजी, उपासना मति माताजी, सवर्ण मति माताजी, उपशम मति माताजी व सुवर्णमति क्षुल्लिका आदि 12 इस तरह कुल 19 पीछी का आगमन हो रहा है। उनके साथ बाल ब्रह्मचारिणी वीणा दीदी व नगर के बाल ब्रह्मचारी विकास भैया भी उग्र विहार कर थांदला पधार रहे है। 19 वर्षों बाद 19 पीछी का 6 मई 2024 जिसका योगांक भी 19 ही हो रहा है का समान आंकड़ा आना यह शुभ संयोग ही कहा जायेगा जो नगर में वैभव सम्पन्नता लाएगा।
उल्लेखनीय है कि 29 सितंबर 1965 में जन्में मुनिश्री से ही उनके पिता पन्नालालजी मेहता
समाधिस्थ मुनि श्री परमेष्ठि सागर व माताजी श्रीमती गुणवंती देवी
समाधिस्थ आर्यिका श्री पुण्यमतिजी के रूप में दीक्षा ग्रहण की थी। यही नही आपकी प्रेरणा पाकर आपके परिवार से 2 भाई, काका – काकी व भतीजा भी संयम मार्ग पर चल रहे है। मुनि श्री दयासागरजी से 2 प्रतिमा के व्रत कार्तिक कृष्ण अमावस्या वीर निर्माण संवत 2510 सेमारी राजस्थान में लेने के बाद आपने चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य श्री अजितसागरजी से ज्येष्ठ शुक्ल दशमी 7 जून 1987 उदयपुर में
आचार्य पदारोहण के अवसर पर सीधे मुनि दीक्षा ग्रहण की। अपनी 37 वर्षों की संयम पर्याय में आपने 14 श्रावकों को मुनि व 27 श्राविकाओं को आर्यिका तथा 3 संत क्षुल्लक व इतनी ही क्षुल्लिका बनाकर जिनमार्ग पर आरूढ़ किया है। आपने कर्नाटक, असम, झारखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में विचरण कर धर्म की गंगा बहाते हुए प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र सम्मतशिखरजी में लगातार 4 सहित 5 चातुर्मास, सोनागिरि तीर्थ, गोवाहाटी, श्रवणबेलगोला आदि अतिशय क्षेत्रों में भी चातुर्मास किये है। इस दौरान आपने 45 से अधिक आत्माओं को सम्यक समाधि सल्लेखना कराते हुए उन्हें शास्त्रों में उल्लेख है कि उत्कृष्ट समाधि होने मोक्ष के निकट किया है। यह किसी भी संत के संयम की उत्कृष्ट उपलब्धि भी कही जा सकती है। मुनिश्री के द्वारा थांदला में 2005 में पंच कल्याणक महोत्सव मनाया गया था उसके बाद आपके द्वारा अनेक स्थानों पर पत्थर, धातु और रत्नों की प्रतिमाओं में धार्मिक मंत्रोचार सूरी मंत्र से उन प्रतिमाओं की पंच कल्याणक में गर्भ, जन्म, तप, केवलज्ञान और मोक्ष रूपी पंच कल्याणक के माध्यम से प्रतिमाओं को पूजनीय बनाते हुए धर्म में अभिवृद्धि की गई। ऐसे गौरवशाली संत के आगमन से आने वालें दिनों में भगवान महावीर के मूलभूत सिद्धांतों की जिनवाणी के रूप में गंगा बहेगी जिसका लाभ हर आगंतुक महानुभाव उठा सकेंगें।