नगर गौरव मुनि श्री पुण्य सागर का बहु प्रतीक्षित मंगल प्रवेश जैनेश्वरी दिगंबर दीक्षा से हुआ यादगार अविस्मरणीय
थांदला
प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांतिसागरजी की अक्षुण्ण मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परम्परा के चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य श्री अजित सागर जी के शिष्य मुनि नगरवगौरव श्री पुण्य सागर जी का 19 वर्षो बाद 19 शिष्यों सहित प्रवेश हुआ। दीक्षा
कार्यक्रम का मंगलाचरण संघस्थ बाल ब्रह्मचारिणी वीणादीदी एवम ने किया । ने बताया कि कमेटी द्वारा श्री अतिथियों का स्वागत किया गया।
भगवान श्री महावीर स्वामी तथा प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांति सागर जी एवम पूर्वाचार्यो को अर्ध्य समर्पित विभिन्न नगरों से पधारी समाज द्वारा किया गया।सौभाग्यशाली
परिवार की 5 महिलाओं द्वारा चोक पूरण की क्रिया की गई । मुनि श्री का प्रवचन हुआ।इस बेला में मुनि श्री के द्वारा दीक्षार्थी के पंच मुष्ठी केशलोच किये गए तथा दीक्षा संस्कार मस्तक तथा हाथों पर किये गए। इसके बाद दीक्षा गुरु श्री पुण्य सागर जी ने नामकरण किया। क्षुल्लक जी का दीक्षा उपरांत नूतन नाम 108 मुनि श्री पूर्ण सागर जी किया गया। दीक्षा का अर्थ है इच्छाओं का दमन दीक्षा याने लंच और मंच का बदल जाना दीक्षा मतलब ड्रेस और एड्रेस का परिवर्तन हो जाना विचारों में क्रांति को दीक्षा कहते हैं आमूलचूल परिवर्तन को दीक्षा कहते हैं जैनियों की दीक्षा राग द्वेष निवृत्ति के लिए होती है दीक्षा पूर्व संस्कार को तोड़ने का नाम है दीक्षा संसार से मुख्य मोड़ कर अंतर बुक दृष्टि हो जाने को कहते हैं अलौकिकता से दूर आध्यात्मिक नगर के नजदीक रहना दीक्षा है पुण्यार्जक परिवार द्वारा संयम उपकरण भेंट किये गए। कार्यक्रम का सुंदर एवम प्रभावशाली संचालन श्री ने किया। आज केशलोच हो रहे थे, तब सभी वैराग्यमयी पलों से सभी द्रवित हो रहे थे। वैराग्य मय भजनों से वातावरण वैराग्य मय हो रहा मुनि श्री पुण्य सागर जी एवम् अन्य साधुओं ने दीक्षार्थी क्षुल्लक श्री पूर्ण सागर जी के केशलोचन किये।परिजनों एवम अन्य भक्त जिन्हें केशलोच झेलने का अवसर मिला। वह अपने को पुण्यशाली मान रहे थेनगर गौरव मुनि श्री पुण्य सागर का बहु प्रतीक्षित मंगल प्रवेश जैनेश्वरी दिगंबर दीक्षा से हुआ यादगार अविस्मरणीय
थांदला
प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांतिसागरजी की अक्षुण्ण मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परम्परा के चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य श्री अजित सागर जी के शिष्य मुनि नगरवगौरव श्री पुण्य सागर जी का 19 वर्षो बाद 19 शिष्यों सहित प्रवेश हुआ। दीक्षा
कार्यक्रम का मंगलाचरण संघस्थ बाल ब्रह्मचारिणी वीणादीदी एवम ने किया । ने बताया कि कमेटी द्वारा श्री अतिथियों का स्वागत किया गया।
भगवान श्री महावीर स्वामी तथा प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांति सागर जी एवम पूर्वाचार्यो को अर्ध्य समर्पित विभिन्न नगरों से पधारी समाज द्वारा किया गया।सौभाग्यशाली
परिवार की 5 महिलाओं द्वारा चोक पूरण की क्रिया की गई । मुनि श्री का प्रवचन हुआ।इस बेला में मुनि श्री के द्वारा दीक्षार्थी के पंच मुष्ठी केशलोच किये गए तथा दीक्षा संस्कार मस्तक तथा हाथों पर किये गए। इसके बाद दीक्षा गुरु श्री पुण्य सागर जी ने नामकरण किया। क्षुल्लक जी का दीक्षा उपरांत नूतन नाम 108 मुनि श्री पूर्ण सागर जी किया गया। दीक्षा का अर्थ है इच्छाओं का दमन दीक्षा याने लंच और मंच का बदल जाना दीक्षा मतलब ड्रेस और एड्रेस का परिवर्तन हो जाना विचारों में क्रांति को दीक्षा कहते हैं आमूलचूल परिवर्तन को दीक्षा कहते हैं जैनियों की दीक्षा राग द्वेष निवृत्ति के लिए होती है दीक्षा पूर्व संस्कार को तोड़ने का नाम है दीक्षा संसार से मुख्य मोड़ कर अंतर बुक दृष्टि हो जाने को कहते हैं अलौकिकता से दूर आध्यात्मिक नगर के नजदीक रहना दीक्षा है पुण्यार्जक परिवार द्वारा संयम उपकरण भेंट किये गए। कार्यक्रम का सुंदर एवम प्रभावशाली संचालन श्री ने किया। आज केशलोच हो रहे थे, तब सभी वैराग्यमयी पलों से सभी द्रवित हो रहे थे। वैराग्य मय भजनों से वातावरण वैराग्य मय हो रहा मुनि श्री पुण्य सागर जी एवम् अन्य साधुओं ने दीक्षार्थी क्षुल्लक श्री पूर्ण सागर जी के केशलोचन किये।परिजनों एवम अन्य भक्त जिन्हें केशलोच झेलने का अवसर मिला। वह अपने को पुण्यशाली मान रहे थे